Analysis of Social and Political Thoughts of Dr. Bhimrao Ambedkar
डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों का विश्लेषण
DOI:
https://doi.org/10.31305/rrijm.2021.v06.i12.023Keywords:
Society, Social, Political, Ambedkar caste, Varna-systemAbstract
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया, कई स्तरों पर और कई पद्धतियों से चलने वाली एक अखण्ड प्रक्रिया है। व्यक्ति या वर्ग के समूह से जब समाज बनता है, तो धीरे-धीरे कुछ नियम-उपनियम बनाये जाते है। इसके मूल में दृष्टि केवल इतनी ही होती है कि उस समाज में स्थित प्रत्येक को व्यक्तित्व का समुचित अवसर उपलब्ध हो। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु स्वतंत्र हो उस पर किसी व्यक्ति अथवा गुट का कोई बंधन न हो। यह सब, प्रत्येक समाज का मूलभूत सिद्धान्त होता है। धीरे-धीरे ये सिद्धान्त स्थायी बन जाते है, फलतः इनको वैधानिक स्वरूप देने के लिए किसी ‘ग्रन्थ’ की आवश्यकता पड़ती है। जब ‘ग्रन्थ’ की रचना समाज के द्वारा नहीं हो पाती या समाज इस प्रकार के ‘ग्रन्थों’ अथवा ‘साहित्य’ की रचना से बचना चाहता है, तो कोई सक्षम और विद्वान व्यक्ति इस प्रकार के ‘ग्रन्थ’ की रचना धर्म, ईश्वर के नाम पर करता है। धर्म और ईश्वर के नाम पर स्थापित ये ‘ग्रन्थ’ काफी समय तक समाज द्वारा स्वीकृत होते है। इन ‘ग्रन्थों’ में इसके रचनाकार द्वारा कुछ अमानवीय, अलोकतान्त्रिक और अव्यावहारिक प्रावधानों को भी शामिल कर दिया जाता है। इसका कोई विरोध भी नहीं करता, क्योंकि ‘धर्म अफीम की गोली के समान है।’ ये ग्रन्थ अपरिवर्तनशील होते है, फलतः व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधा उत्पन्न होता है। इस व्यवस्था से अनेकशः लोग पीड़ित होते है, इसलिए इन शोषित वर्गो के अन्दर विद्रोह की ज्वाला धीरे-धीरे पनपने लगती है, लेकिन उनके अन्दर विद्रोह करने की क्षमता नहीं होती। परिणामतः इस समाज का कोई संवेदनशील, सक्षम और क्रांतिकारी व्यक्ति इस व्यवस्था के प्रति विद्रोह कर एक नयी व्यवस्था की आवश्यकताओं की वकालत कर देता है। बाबा साहब डाॅ. अम्बेडकर जी इसी परम्परा के विद्रोही महापुरूष है।
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